Tuesday 18 November 2014

पुर्ज़े

वो मशीन के हर पुर्ज़े को 
कसता है अक्सर बड़ी तरकीबों से ।  
पेंच चढ़ाता है । 
और एहसास दिलाता है उन्हें कि 
वो उस मशीन का एक हिस्सा हैं बस । 

पसंद किसी पुर्जे को नहीं
इस तरह से कसा जाना । 
अपना राग खोकर 
किसी और की धुन पर गाना । 

पर कहता है वो बिन कसे 
पुर्ज़े ठीक से काम नहीं करते।  

वो नहीं चाहता उनका अपना अस्तित्व  हो, 
वो नहीं चाहता कि पुर्ज़े बागी हो जायें । 

© Neeraj Pandey

Saturday 15 November 2014

तुम्हारा खुदा

तो कहते हो तुम तुम्हारा खुदा है कोई |
हाँ...  देखा है मैंने उसे अक्सर अलग अलग अवतारों में,
तुम्हारी शक्ल पर दिखता है
और आदत बनकर साथ ही रहता है |
कभी तुम्हारी ज़रूरतों में,
तो कभी तुम्हारे डर में
उसे पनपते और बढ़ते हुए अक्सर देखा है मैनें |

तुम्हारे आँख, नाक, कान तो
सही ग़लत का स्वाद  नहीं चख पाते अब,
बस उसकी घंटी सुनकर
वक़्त बेवक़्त,
जय जयकार करने लगते हो तुम,
वो ही तुम्हारी
इन्द्रियों का इंद्र बन बैठा है अब |

देखा है मैंने उसे अक्सर अलग अलग अवतारों में
तुम्हारी शक्ल पर दिखता है वो
तुम्हारी आदत बनकर.

8 घंटों की नींद, बड़बड़ करता टीवी,
LIC की किश्त और बेतुके बयानों ने
तुम्हें इतना खोखला बना डाला है
की हर नयी शक्ल से परहेज़ होने लगा है तुम्हे,
एक जैसे सबके चेहरे तलाशते
तुम बन चुके हो एक बांझ सोच
और चपटी ज़ुबान के मालिक
जो जन्म लेने से पहले ही कहीं दफ़न हो चुकी है |

अपने आका की तरकीबों पर
कोई सवाल न उठाना
मूक बनकर मान लेने की फितरत 
ही तुम्हारे जीने का मूल मंत्र है|

कसाइयों की  हाँ में हाँ मिलाकर
तुमने कत्ल होने से बचाया खुद को
और बस बंधे हुए हो उसी कसाई खाने में
नैतिकता के नाम पर,
इसके अलावा कुछ और तो नहीं
जो खुद सा हो।

तुम्हे नथुने से पकड़ कर घसीटता
हर रोज़ दीखता है  मुझे
हाँ  मैने भी देखा है उसे अक्सर अलग अलग अवतारों मे,
तुम्हारी शक्ल पर दिखता है वो 

© Neeraj Pandey