Tuesday 18 November 2014

पुर्ज़े

वो मशीन के हर पुर्ज़े को 
कसता है अक्सर बड़ी तरकीबों से ।  
पेंच चढ़ाता है । 
और एहसास दिलाता है उन्हें कि 
वो उस मशीन का एक हिस्सा हैं बस । 

पसंद किसी पुर्जे को नहीं
इस तरह से कसा जाना । 
अपना राग खोकर 
किसी और की धुन पर गाना । 

पर कहता है वो बिन कसे 
पुर्ज़े ठीक से काम नहीं करते।  

वो नहीं चाहता उनका अपना अस्तित्व  हो, 
वो नहीं चाहता कि पुर्ज़े बागी हो जायें । 

© Neeraj Pandey