Saturday 29 August 2015

एक पन्ना : रात, चाय, व्हाट्सएप्प और...

फेसबुक पर अनंत ने अभी अभी अपनी कवर फोटो बदली है… चाय का एक गिलास पकड़े  हुए… चाय पीते हुए । कसम से ललचाने वाली फोटो है।  गिलास बिल्कुल वैसा,  जिसमे मैं अपनी कॉफ़ी पीता हूँ। मुझे चाय से ज़्यादा कॉफ़ी पसंद है। स्पेशली फ़िल्टर कॉफ़ी। उसके निचोड़ कर निकाले गए कॉफ़ी बीन्स के रस की थोड़ी मात्रा में मिला दूध और थोड़ी सी शक्कर का जो जादू होता है मैं उसे कह कर शायद बयां नहीं कर सकता। क्योंकि मैं खुद भी इस लाइन को लिखते लिखते यही सोच रहा हूँ कि उसके लिए सही शब्द क्या होगा। मैं लिख नहीं पाया कि मैं कैसा महसूस करता हूँ। पर एक बात तो तय है फ़िल्टर कॉफ़ी से मेरा एक रिश्ता बन गया है। कम से कम मैं ये तो कह ही सकता हूँ कि उबले हुए कॉफ़ी बीन्स को एक कपडे में डालकर निचोड़ना शायद जीवन के उस पल को निचोड़कर एक प्याले में पीने जैसा है  एक प्याले में जीवन के उस पल का सारा रस.… सारा निचोड़। 

पर अभी अनंत की वो फोटो देखकर मुझे चाय पीने का मन हो रहा है। रात के डेढ़ बजे…  पर क्यों? अभी तो कई लोगों की आधी रात गुज़र चुकी होगी। मेरे कमरे में भी बस मैं और मेरा मोबाइल जाग रहे हैं। मैं सोच रहा हूँ की बाहर जाकर चाय पी लूँ। पर वो उस तरह के गिलास में नहीं मिलेगी जिसमें अनंत पी रहा है। मैं चाहता हूँ चाय की एक प्याली के साथ कुछ पढ़ना, पर मेरे अंदर का एम्प्लॉयी मुझे कल ऑफिस जाने की याद दिला रहा है। पर चाय का ख्याल है कि अभी भी जागा हुआ है। मैं किसी के साथ बैठकर पीना चाहता हूँ, भले ही वो किरदार किताबों से निकल कर क्यों न आये। 

दरअसल मैं अभी भी जागना चाहता हूँ… चाय तो जागने का बहाना है बस। मैं किसी को भी फ़ोन करके रात के इस वक़्त डिस्टर्ब नहीं करना चाहता।  और सभी मेरे इस पागलपन में अपनी हिस्सेदारी देख भी नहीं सकते। मैंने ये सब सोचते सोचते दुबारा मोबाइल उठा लिया, कुछ लोग व्हाट्सऐप पर अभी भी ऑनलाइन हैं। मैंने एक दोस्त के लिए कुछ शब्द टाइप किया पर कुछ सोचकर मिटा दिया। तभी मुझे याद आया, तुम जाग रही होगी। मुझे अमेरिका की अच्छी बात यही लगी कि देर रात भी अगर मैं तुमसे बात करना चाहूँ तो तुम जाग रही होगी। तो मैंने तुम्हे पिंग किया…  हमनें बातों बातों में जीवन में चल रही कुछ बातों को व्हाट्सप्प के नेटवर्क पर हमेशा के लिए दर्ज़ कर दिया। अपने जीवन में हो रहे उतार चढाव के साथ फिल्मों की बात भी की, शायद जो किरदार मैं ज़िंदा करना चाहता था, कई हद्द तक तुमसे बात कर के मैंने गढ़ लिया। 

ये बातें इतनी पर्सनल सी हो गयीं कि मुझे एक कोने की ज़रुरत महसूस होने लगी। जहाँ सिर्फ हम बात कर पाएं, पर ऐसा संभव ना होता हुआ देख मैंने कम्बल ओढ़ लिया और उसके अंदर मोबाइल रखकर तुमसे बातें करने लगा। हमारी बातें अलगे बीस मिनट तक चलती रहीं, जितने में शायद एक कहानी और दो चाय के छोटे छोटे प्याले ख़त्म हो जाते। वैसे ही प्याले जिसमे अनंत चाय पी रहा था। मुझे अचानक याद आया वक़्त भी 1:40 हो चुका है, और तुम अभी ऑफिस में हो। पता नहीं कैसे पर तुमसे बात कर के वो मेरी चाय पीने की इच्छा की तृप्ति भी हो गई है। मैंने कुछ किरदार भी ज़िंदा कर लिए हैं अब मुझे अपने कम्बल में ही उन किरदारों को रखना है। कम्बल और बातों की गर्मी ने मुझे खासा आराम दिया है, मुझे अब नींद आ रही है । मैंने तुम्हे 'गुड आफ्टर नून 'और तुमने मुझे  'गुड नाईट, सी यू' एक स्माइली के साथ कहा। मैं भी जवाब में दो स्माइली भेज कर खुद में ही मुस्कुराया। अब मैं अपना मोबाइल स्विच ऑफ कर रहा हूँ। 

Wednesday 12 August 2015

ये प्यार नहीं

मैं तुमसे प्यार नहीं करता,
हाँ, अच्छी लगती हो,इतना ज़रूर है । 

क्योंकि,
प्यार जब भी होता था 
वो आता था एक डर के साथ,
जन्म जन्मान्तर का बर्डन डाले । 

एक खुद को बदलने की जद्दोज़हद भी 
कि मैं भी उस साँचे में बंध  जाऊँ
जिसे दुनिया सोलमेट कहती है । 

मैं भी करूँ वही पुरानी क्लिशे हरकतें 
जो दशकों से घिसे पिटे प्यार का प्रमाण हैं । 
मैं सोचूँ कुछ और, और बोल दूँ कुछ,
क्योंकि डेटिंग की किताबों में वैसा ही कुछ लिखा है । 

और जानता हूँ तुम्हें भी मुझसे प्यार नहीं,
क्योंकि, हमारा कोई करार नहीं
और न ही कोई उम्मीद है … 
 हम डरते भी नहीं एक दुसरे से 
और ना हीं ये ख्याल कि 
तुम बिन मेरा क्या होगा । 

एक वक़्त है , एक फ़ोन है, कुछ यादें हैं, 
और कभी कभी ही सही, पर घंटों बातें हैं … 
देखो ये प्यार है ही नहीं,
हाँ,तुम्हेंअच्छा लगता होऊंगा,इतना ज़रूर है ।