मैं तुमसे प्यार नहीं करता,
हाँ, अच्छी लगती हो,इतना ज़रूर है ।
क्योंकि,
प्यार जब भी होता था
वो आता था एक डर के साथ,
जन्म जन्मान्तर का बर्डन डाले ।
एक खुद को बदलने की जद्दोज़हद भी
कि मैं भी उस साँचे में बंध जाऊँ
जिसे दुनिया सोलमेट कहती है ।
मैं भी करूँ वही पुरानी क्लिशे हरकतें
जो दशकों से घिसे पिटे प्यार का प्रमाण हैं ।
मैं सोचूँ कुछ और, और बोल दूँ कुछ,
क्योंकि डेटिंग की किताबों में वैसा ही कुछ लिखा है ।
और जानता हूँ तुम्हें भी मुझसे प्यार नहीं,
क्योंकि, हमारा कोई करार नहीं
और न ही कोई उम्मीद है …
हम डरते भी नहीं एक दुसरे से
और ना हीं ये ख्याल कि
तुम बिन मेरा क्या होगा ।
एक वक़्त है , एक फ़ोन है, कुछ यादें हैं,
और कभी कभी ही सही, पर घंटों बातें हैं …
देखो ये प्यार है ही नहीं,
हाँ,तुम्हेंअच्छा लगता होऊंगा,इतना ज़रूर है ।
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