Sunday 3 April 2016

कहानी-संभावनाएँ. www.thelallantop.com पर.

जिस टेबल पर वो दोनों बैठे थे वहाँ आस पास कोई भी नहीं था। कल्चरल वेन्यू होने के बावजूद आज कैफ़े वाला एरिया बिल्कुल खाली था। इसकी एक वजह थी वीक डे का होना और दूसरी यह कि जो थोड़े लोग आज आये थे वे भी अपने अपने इवेंट में बिजी हो गए थे। यहाँ कैफ़े में हरकत के नाम पर कैफेटेरिया में एक औरत कॉफ़ी बना रही थी और दूसरी तरफ लम्बी टेबल जिसपर खूब सारी पुरानी किताबों का ढेर रखा होता, एक बिल्ली करवटें बदल रही थी। इक्का दुक्का लोग पतली बाँस की बनी दीवार के पीछे थोड़ी देर खड़े होते, सिगरेट फूंकते और फिर ऐसे निकल जाते जैसे वहाँ किसी को जानते ही नहीं। पूरे कैफ़े में अलग अलग बल्बों की पीली रौशनी, कैफ़े में बिखरने वाली रात को और गाढ़ा बना रही थी। युग और अनु ऐसे ही किसी एक बल्ब के नीचे बैठे कुछ देर से बातें कर रहे थे। दोनों आज दूसरी बार मिल रहे थे। पहली बार भी यहीं मिले थे, एक इवेंट के दौरान ही, और अब मिलने का बहाना फिर से एक ऐसा ही इवेंट था। बहाना इसलिए, क्योंकि इवेंट तो हॉल में बंद दरवाज़े के अंदर कब का शुरू हो चुका था। पर दोनों इस बात को जानते हुए भी इग्नोर कर रहे थे। उनकी अपनी दुनिया और बाकी की दुनिया के घटने के बीच कुछ था तो बस एक दरवाज़ा। लकड़ी का मोटा, भारी दरवाज़ा। जिसे युग की एक आँख ने लगातार बंद कर के रखा हुआ था। उसे डर था कि उसके आँख हटाते ही वो दरवाज़ा खुल जाएगा और अन्दर की दुनिया उसकी इस दुनिया में घुसपैठ कर बैठेगी। जितनी देर भी हो सकता था वो अनु के साथ इसी दुनिया में रहना चाहता था।  

मैं कुछ और... दस पंद्रह दिनों के लिए ही यहाँ हूँ  अनु ने बातों ही बातों में अपना सर बाएं कंधे की तरफ झुकाते हुए कहा और फिर चुप हो गई। युग जो अब तक काफी खुश था, अनु की इस बात से  उसकी ख़ुशी की आँख में अचानक एक तिनका गिर पड़ा। वो यह सुनने के लिए तैयार नहीं था।  उसके दोनों होठ अभी भी अपनी जगह पकड़ कर वैसे ही बैठे हुए थे पर आखें कुछ और ही हो गई थीं। थोड़ी देर तक वो इधर उधर की बातें करता हुआ खुद को और अनु को भी यही बताता रहा कि शायद उसे फर्क नहीं पड़ता। पर जब मन के अन्दर की सारी गांठे खुल गई तो उससे रहा नहीं गया दुबारा आओगी?उसने पूछा। दरअसल वो पूछना चाहता था दुबारा आओगी ना... पर इस वक़्त कुछ सोच कर उसने सिर्फ इतना ही पूछा दुबारा आओगी?। शायद उस ‘...ना में उसे एक हक़ के छुपे होने की आहट महसूस हुई थी। वो हक़ जिसके बारे में उसे पता नहीं था कि वो उसका है भी या नहीं। क्या वो यह उसे कह सकता था या फिर नहीं... इसी कशमकश में ‘...ना’ कहीं पीछे छूट गया था।


(पूरी कहानी नीचे दिए हुए link पर पढ़ी जा सकती है)
http://www.thelallantop.com/bherant/ek-kahani-roz-neeraj-pandeys-story-sambhavnaayen/

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