अभी नज़र घुमा कर आस पास देखा. मेरी कॉफ़ी का मग., पानी की बोतल, डायरियाँ, मेरी लिखने की टेबल, मेरा घर, कमरा, कहानियाँ, कविताएँ. सब कुछ ऐसा ही है जैसा थोड़ी देर पहले था. सब कुछ बिल्कुल वैसा ही पर कुछ बदला था.अचानक...
पूरे दिन में एक ऐसा पल आता है जब मैं एक अनजान सी ख़ुशी से भर जाता हूँ. अलसा कर चलता हुआ दिन एक बिंदु पर आकर सुख की नोख़ बन जाता है जहाँ से टप-टप कर के लगातार सुख चूता है, ख़ुशी चूती है. अभी ऐसी ही नोख के नीचे बैठा हूँ, तो मुझे लगा कि इसको लिख लेना चाहिए. आजकल पिछले एक हफ्ते से एक 'नई' कहानी पर काम कर रहा हूँ. नई पर ज़ोर इसलिए है भी कि जैसा या जो मैं लिखता हूँ उससे काफी अलग है ये. इस पर खूब सारी रिसर्च और कल्पना की एक कसी हुई उड़ान की ज़रुरत है. कहानी का ना लिखा जाना या ना लिख पाना एक थका देने वाला है, इससे उलट लगातार लिखते रहना किसी भाप भरे इंजन का छुक-छुक कर के चलते रहना. पर ऐसे ही अलसाए हुए थकान भरे दिन में ली हुई झपकियों में भी इसके पात्र आपस में बात करते रहते हैं, अपना रास्ता ढूंढते रहते हैं और मुझे आलस को बीच से तोड़ तोड़ कर अपने मोबाइल में ही इनके संवाद और मनस्थिति रिकॉर्ड करने पर मजबूर करते हैं. दूसरी तरफ अलग अलग किताबों की अपनी अलग दुनिया है जो मेरी छोटी से लाइब्रेरी (यह लिखते हुए मुझे बहुत ही अच्छा सा लगा, शायद इसलिए कि यह होना मेरा सपना) से झांकती रहती है. दुनिया में कितना कुछ है पढने के लिए, उस कितने कुछ में से एक ज़रा सा कुछ मैंने अपने पास रखा है जिसे मैं जल्द से जल्द पढ़ लेना चाहता हूँ. इसकी सोच भी एक सुकून एक से भर देने वाली है शायद यह सबकुछ जो आस पास चल रहा है या जो घट चुका है शायद उसमें अपनी परछाई ढूंढ लेने का सुकून है.
आज कल इस नई कहानी की रिसर्च के सिलसिले में जब भी ऑनलाइन आकर थोड़ी रिसर्च करता हूँ तो इस 'कितना कुछ पढने' में बहुत कुछ नया जुड़ जाता है साथ ही दूसरी तरफ कविताओं का दौर है. जो मुझे अपनी तरफ खींच लेता है. यह सब कुछ एक साथ करने की इच्छा के फैलाव में इतना नुकीलापन है कि यह एक तरह का सुख देता है, जिससे में बैठे बैठे ही भरने लगता हूँ. इस सुख को जो ख़ुशी है मैंने पहले भी कई बार महसूस किया है पर इस तरह से लिखा कभी नहीं... आज लिख रहा हूँ. हमने अपने सुखों को कितना कम लिखा है, जीवन को जीवित समझकर कितना कम जिया है. जीवन को इस नोख पर कितना कम जिया है.