Saturday 16 July 2016

आश्चर्य कैसा

आश्चर्य कैसा
जब शून्य से एक के बीच हैं
अनगिनत संख्याएँ
नींद से जागने के बीच
अनगिनत पड़ाव सपनों के 

सागर तक पहुँचते हुए
जाने कितनी बार बहती है नदी
और सात सुरों के बीच भी तो
बजता है अपार संगीत

जब एक कण में छुपा हुआ है
जीवन' का रहस्य
शुरू होने से अंत तक इसके

तो बिल्कुल भी आश्चर्य नहीं
मेरा तुम्हें ढूंढ लेना 
हर प्रेम कहानी में

हमारे बीच
प्रेम के इतिहास का होना
कोई भी आश्चर्य नहीं

तुम्हारी याद में
मेरी आँखों से निकलती
एक गुनगुनी बूँद
उसके आँखों की है
जिसने सबसे पहले प्रेम किया था

मेरे अन्दर दौड़ती
इस लहर को,
इस सांय सांय पुरवाई को
वो भी महसूस करेगा
जिसे प्रेम आखिर में पालेगा


हम दोनों के बीच
जो भी है, कुछ चलता हुआ
बदलता हुआ 
उसमें कोई भी आश्चर्य नहीं..

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