Monday 15 August 2016

बिखरे पन्नों से: भाग १

खुद को जानना कई मायनों में खुद से ही एक लड़ाई है. जिसे हम ‘जिया जा चुका’ कहते हैं वो दरअसल काफी वक़्त तक साथ चलता है. खुद से होकर गुज़रे हुए वक़्त का काफी हिस्सा अन्दर पड़ा रहता है... हम हर क्षण कुछ और होते हुए, कुछ और हो रहे होते हैं. जीवन के अलग अलग चरणों को पलट कर देखूँ तो खुद के बारे में यह कह सकता हूँ कि मैंने अलग अलग दृष्टिकोणों और अनुभवों को जिया है. यह सिर्फ अलग अलग वक़्त पर बन जाने वाला अलग अलग किरदार नहीं है, यह वो है जो बीत चुका है और वह भी है जो कल आने वाला है. किस पड़ाव से कितना चला जा चुका है और अभी और कितना चला जाना है कह पाना मुश्किल है. इसी बीते हुए और आने वाले के बीच मैं खुद को बस चलता हुआ पाता हूँ. एक ऐसे मिट्टी के लोदे की तरह जिसे एक मुर्ति से तोड़ कर निकाला गया हो और उसी से दूसरी मुर्ति बनाने की तैयारी हो रही है. पर मैं इस वक़्त दोनों में से कोई भी मूर्ति नहीं हूँ...मैं वह सना हुआ मिट्टी का लोदा हूँ जिसे वक़्त अभी सान रहा है.

जो जिया जा चुका है उसमें बहुत कुछ सहना भी शामिल है पर सहन कर जाना हमें मजबूत नहीं बनाता हाँ सचेत ज़रूर कर सकता है... हमें वो आँखे दे देता है देखने के लिए कि “देख लो ये भी है.” और फिर हम खुद से खुद के लिए शातिर बनने का अभिनय करते हैं दरअसल हम डरे हुए हैं, हम जीवन को सहना नहीं, जीना चाहते हैं. और यही जी लेने की इच्छा हमें हमेशा सचेत करती रहती है. जिसका शिकार होता है वो जो अभी जिया जाना बाकी है.

पर इन सबमें जो एक खूबसूरत बात है वो ये कि मैंने हर बार अपने ‘जिए जाने वाले’ से ‘जिए जा चुके’ शातिर और डरे हुए व्यक्ति को हारता हुआ देखता हूँ. हर बार जीवन मुझे जीवन बन कर ही मिलता है और मेरे पूर्वाग्रहों को तोड़ता है. जीवन जो बढ़ा जा रहा है उसे हर बार, यह बात सुकून देती है कि उसके बुरे अनुभवों की हार हुई है, जीवन वहाँ से कब का आगे निकल चुका है. यह इस बात की तसल्ली है कि जो वक़्त का मेहमान है उसे वो सब कुछ फिर से नहीं सहना होगा. हाथ का एक बार जलना या दस बार दोनों ही उतने ही दुखद हैं. इस हार पर पेट में एक फ़व्वारा फूटता है जो अपनी ही हार का जश्न मनाने जैसा है और खुद से सवाल भी कि जो हम जी चुके हैं उसके आगे कितना कुछ है जो हमारा इंतज़ार कर रहा है, जो अभी जीया जाना बाकी है. धीरे धीरे मेरे पूर्वाग्रह टूट रहे हैं, जीवन दिख रहा है, मुझे इस सन रही मिट्टी से बनने वाली नई मुर्ति का इंतज़ार है...

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