Tuesday 12 June 2018

तीन साल मुम्बई और एक छोटी सी बात

आज ही के दिन तीन साल पहले पहली बार मुंबई आया था। बारिश होकर बस रुकी ही थी। फिल्में और कहानियों में पढ़ी हुई मुम्बई को ट्रेन की खिड़की से देख रहा था। वेस्टर्न एक्सप्रेस हाई-वे पर भागते हुए ऑटो में यह तलाश कर रहा था कि इस शहर में मेरी जगह कहाँ होगी? अब तक का जिया हुआ सब पीछे हो गया था और अब एक नई डायरी पर नई कहानी लिखनी थी... हाथ काँप रहे थे। पिछले तीन सालों का सफर काफी उतार चढ़ाव से भरा पर उम्मीद से ज़्यादा मजेदार रहा है। इस शहर में सबके अनुभव अलग होते हैं, पर मेरे अनुभव के हिस्से में यह बात आती है कि आजतक कभी ऐसा नहीं हुआ कि मैंने किसी से मदद माँगी और उसने मना किया हो। इस शहर के संघर्ष में लोग कभी संघर्ष नहीं हुए। कई सारे खूबसूरत दोस्त दिए हैं इस शहर ने जो अपनी व्यस्तताओं के बावजूद मेरे लिए तैयार खड़े होते हैं, हौसला बढ़ाते हैं। और मैं इस बात से खुश रहता हूँ कि ये सब मेरे दोस्त हैं... मुंबई ने छोटी छोटी खुशियों को बटोरना सिखाया, काम करना सिखाया और शुरूआती दिनों में कुछ निराशाएँ देकर यह भी सिखाया है कि 'निराशा' हमेशा रहने वाली चीज़ नहीं है। 

इसी शहर ने 'सॉरी' और 'थैंक यू' बोलना सिखाया और बोला कि "Don't be a lazy writer, अपने दुःख से बाहर भी देख, एक बड़ी दुनिया है लिखने के लिए..." काम को लेकर अलग अलग तरह के एक्सपेरिमेंट करने का मौका बस यही शहर दे सकता था। सो किया और कर रहा हूँ... दिल्ली से बैंगलोर जाना और बैंगलोर से मुंबई आना मेरी अब तक की सबसे महत्वपूर्ण यात्राएँ हैं। 

आज फिर बारह जून है, आज फिर मैं ट्रेन से वापस मुम्बई आ रहा हूँ, आज फिर बारिश के आसार हैं। मुंबई लौटना अब घर लौटने जैसा लगता है। कहानी तो अभी भी चल रही है पर अब हाथ नहीं काँपते, अब संधर्ष यह है कि जो भी लिखूँ पूरी ईमानदारी से लिख पाऊँ। पहली बार जब लोकल की टिकट ली थी तो कुछ सोचकर वो संभाल कर रख ली थी। वह सिलसिला अभी भी चल रहा है। आज तीन साल बाद इन टिकटों में मेरी इस शहर की सारी यात्राएँ मौजूद हैं और इनके अंदर इतनी कहनियाँ, जिसको सोचो तो लगता है कई जीवन जी लिये हों। उम्मीद है यह शहर उन सारी यात्राओं का मौका देगा जिसकी मुझे उम्मीद नहीं पर ज़रूरत ज़रूर है।

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