Wednesday 24 December 2014

ऐलिस इन वंडर लैंड का कुवां

किताबों को उनके किये की सजा मिल रही है ।
बिन बुलाये मेहमान सी
हालत है अब इनकी ।

किताबें सवाल करती थीं ।

पूछती, मुझसे मेरे होने का मकसद ।
बतलाती, दुनिया में कितनी भूख मरी है।
समझती, कि लाल और नीली गोलियों में फर्क होता है।
हिलाती, मान्यताएँ और झझकोरती कम्फर्ट जोन को ।

पर स्क्रीन,
जैसे ऐलिस इन वंडर लैंड का कुवां
एक बार कूदो और गिरते जाओ,
खुद के प्रतिबिम्ब में,
बन लो अपनी दुनिया जैसी तुम चाहते हो ।
उगा लो, खेत और बना लो कारखाने
दूर कर दो भूखमरी और बेरोज़गारी ।
बचा लो किसी शहर को
किसी एलियन के अटैक से ।
दिखा दो सबको कि तुम्हारे अवतार
विष्णु से भी कहीं ज़्यादा हैं ।
सबके वाऊ, हाव्, आव्व के बीच
बन जाओ पूजनीय ।
सुलझा कर सारी पहेलियाँ
बन बैठो इस दुनिया के
सबसे सुलझे हुए शक्स।


© Neeraj Pandey