Saturday 17 January 2015

आओ ना

तुम्हें अक्सर कहते सुना है
        - ज़िंदगी के सफर में बहुत लेट हो गई हूँ मैं।
मैं अपनी रेल बचाकर लाया हूँ
इस शातिर दुनिया की नज़रों से,
आओ मेरा हाथ पकड़ चल चलो,
एक सफर के लिए।
आओ ना ।

© Neeraj Pandey