एक खाली कटोरा
अपने ही पेट से धँसा हुआ,
जो सिर्फ समा लेना जानता है |
यह देनेवाले की
शक्ल नहीं पहचानता
और ना ही इसे परवाह है ।
...बस हिसाब लगाता रहता है
और हरबार पाता है
खुद को - अतृप्त |
ये भूखा कटोरा
वहम खा सकता है,
परछाइयाँ निगल सकता है,
धुन्ध चबा सकता है
और आहार बना सकता है
सारी माया को |
इसकी भूख इतनी है
कि
एक पूरा समानांतर विश्व
समा सकता है इसमें
और ये साला कभी एक
डकार तक नहीं मारेगा |
पड़ा हुआ है अपने जन्म से ये
यूं ही खोखला
और ऐसा ही रहेगा |
तुम्हें वहम था...
यह किसी फ़कीर का नहीं,
भिखारी का कटोरा है।
© Neeraj Pandey
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