एक देश के रूप में हमने हमेशा से ही दिखने से ज़्यादा ना दिखने वाली
चीजों को महत्त्व दिया है, परवाह
ज़्यादा की है. जीवित से ज़्यादा पूज्य वो है जो मृत है. जो हमें दिखता नहीं वो
देवतुल्य हो जाता है जैसे कोई बात समझ ना आने पर गहरी बात... हमारी बात बात पर
आहात होती 'भावना' भी ऐसी ही अदृश्य शक्ति का
उदाहरण है. ऐसी सारी अदृश्य शक्तिओं के बचाव के लिए किए जाने वाले यत्न पुरखों के
नाम पर किया जाने वाला वो पिंडदान है जिसपर कोई भी सवाल नहीं उठाता बस कर देते
हैं. इसकी बात करो तो सारे जीवित मुद्दों को एक तरफ करते हुए अचानक 'भावना' सर्वोपरि हो जाती है. आहात
भावना का मानना हमारे और लोकतंत्र की मौलिक ज़रुरत बन जाता है. पर हमें पता नहीं कि
भावना का इस बारे में क्या कहना है. वो सोचती क्या है?...तो यह चिठ्ठी एक कोशिश है
उससे बात शुरू करने की उसे समझने की कि इसके बाद उन मुद्दों पर भी बात की जा सके
जो ज़िंदा है, जो ज़रूरी
हैं...जो दिखते हैं.
"देखिए दोस्त मिहिर देसाई द्वारा निर्देशित, मेरे द्वारा लिखी हुई 'डिअर भावना' स्वानंद किरकिरे साब की अद्वितीय आवाज़ में."
अपडेट: मेरे पसंदीदा फ़िल्मकार अनुराग कश्यप को डिअर भावना पसंद आई और उन्होंने अपने फेसबुक पेज पर इसे शेयर किया .
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