कभी कभी किसी छोटी सी ही बात पर कुछ ऐसा महसूस हुआ
जैसे अंदर दिल के रखा काँच चटक सा गया हो.
ना जाने कितनी ऐसी चटकने आई हैं इस पर,
हर बार लगता है बस अब ये चकनाचूर हुआ.
पर ढीठ है ये भी मेरी तरह,
मेरी हर उदासी को उसकी उम्र तक संभाल कर रखता है.
और मेरी उदासी भी पानी का उस बुलबुले की तरह ही तो है,
जो पल में बनता और पल में बिखरता रहता है.
इस काँच के चटकेने में किसी का अपराध नहीं है,
इस अजीब सी घुटन में ना ही किसी की हिस्सेदारी है.
खुद के मन में रखी किताबे पढ़ता हूँ, फिर कहानिया गढ़ता हूँ,
कोई और कहाँ वजह है इसकी, ये तो मेरी अपनी बिमारी है.
इस काँच में मुझे आज कोई उदासी तो नहीं दिखती,
पर आज भी सारी चटकने इसके जिस्म पर ज़िंदा हैं.
जैसे अंदर दिल के रखा काँच चटक सा गया हो.
ना जाने कितनी ऐसी चटकने आई हैं इस पर,
हर बार लगता है बस अब ये चकनाचूर हुआ.
पर ढीठ है ये भी मेरी तरह,
मेरी हर उदासी को उसकी उम्र तक संभाल कर रखता है.
और मेरी उदासी भी पानी का उस बुलबुले की तरह ही तो है,
जो पल में बनता और पल में बिखरता रहता है.
इस काँच के चटकेने में किसी का अपराध नहीं है,
इस अजीब सी घुटन में ना ही किसी की हिस्सेदारी है.
खुद के मन में रखी किताबे पढ़ता हूँ, फिर कहानिया गढ़ता हूँ,
कोई और कहाँ वजह है इसकी, ये तो मेरी अपनी बिमारी है.
इस काँच में मुझे आज कोई उदासी तो नहीं दिखती,
पर आज भी सारी चटकने इसके जिस्म पर ज़िंदा हैं.
This is my Fav...Keep coming Brother :)
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