Monday 13 January 2014

मुक्कम्मल है ये नींद तेरे ख़्वाबों से

मुक्कम्मल है ये नींद तेरे ख़्वाबों से
तुझसे मिलने की उम्मीद मे सो लेता हूँ.
एक मासूम सी तस्वीर तुम्हारी ,जैसे नदी का कल कल करता हुआ पानी...
जैसे सुबह के पाँच बजे मेरे ख्याबो में सूरज की रोशनी...
जैसे एक मंदिर की घंटी किसी ने हौले से बजा दी हो...
और उसकी आवाज़ कानों से होते हुए मेरी आत्मा तक आ रही हो..
और फिर मैं भी उस भंवरे की तरह हूँ
जो फूल पर बैठा हुआ बस उसे देख रहा है...
तो कभी उस बच्चे की तरह जो तितली के पीछे दौड़ कर ही खुश है.
और कभी उस कबीर की तरह जिसने अपने खुदा को अपना सब कुछ दे दिया हो.
तभी अलार्म बजता है, पर तुम्हारा हॅंगओवर कायम है.
ज़िंदगी की रेस मे मुझे आज फिर से दौड़ना होगा,
थोड़ी देर के लिए तुमसे फिर से बिछड़ना होगा.
ताकि जब दिन भर मैं थक हार कर आउँ
तो तुमसे मुलाकात हो सके.
फिर से वो पानी कल कल करता बह सके,
फिर से वो भँवरा उस फूल को देख सके.
फिर से वो बच्चा तितली के पीछे दौड़ सके
और फिर कोई कबीर किसी का पूरी तरह से हो सके.

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