Sunday 13 July 2014

क्योंकि वो गांधारी नहीं

वो दोनों अक्सर दिख जाते हैं
एक दूसरे का बोझ उठाते,
सड़कों पर भटकते
हमसे अपने हिस्से का कुछ माँगते.

वक़्त ने कमर झुका दी है इनकी
खुद अपना भार भी नहीं उठा पाते अब.

इनके कपड़े और हालात हरदिन एक से होते हैं

वो बूढ़ा तो ठीक से बोल भी नहीं पता
आँखो मे भी मोतियाबिंद लगता है उसके,
पर बुढ़िया उसके साथ ही रहती है,
उसकी आँख बन कर आगे चलती है.

और मुझे पता है वो उसका साथ नहीं छोड़ेगी
और ना ही अपनी आँखो पर पट्टी ओढेगी
क्योंकि वो गांधारी नहीं
बस एक मामूली सी औरत है,
हर रोज़ पति की आँख बन जाती है
और हर रोज़ गांधारी को आईना दिखलाती है |

© Neeraj Pandey