पर बात यहीं ख़तम नही होती, मुझे तो कुछ और भी शक़ है, सिर्फ़ दरवाज़े पर नहीं पूरे वॉशरूम पर. बात ऐसी है की वॉशरूम के अंदर का माहौल काफ़ी गरम रहता है, इसके परिवार के सदस्य एक दूसरे से बात नहीं करते. बड़ा ही मान मुटाव है सबका आपस में.
कॉमोड ने तो अपना एरिया ही अलग बना रखा है. वो एक फ्लश और एक टाय्लेट पेपर होल्डर के साथ अपना घर बसा कर खुश है. यहाँ तक की उसने अपने एरिया के बाहर दरवाज़ा भी लगा लिया है,. बाहर बचे दो युरिनल, एक वॉश वॉशिन, एक टिश्यू पेपर होल्डर और कोने मे पड़ा हुआ कूड़ेदान. अछूत बेचारा.
युरिनल्स के बीच में मुझे कुछ प्रॉपर्टी का मसला लगता है बोलचाल ऐसी बंद है की अपने बीच दीवारें खड़ी कर रखी हैं, अंबुजा सेमेंट वाली. और वॉश वॉशिन को साइड में अकेला पड़ा रहता है दीवार के कोने में. दूसरी तरफ़ टिश्यू पेपर होल्डर भाई साब सामने की दीवार पर लटके रहते है, ये तो वैसे भले आदमी है, सारे टिश्यू पेपर्स को अपने शरीर मे जगह दी है. पर इनके कई टिश्यू पेपर्स को बड़ा गुरूर है, जैसे किसी बड़े साइल्ब्रिटी को उसके होने का गूरर हो ना हो पर उसके जानने वालों को गूरूर होता है की वो उस सिलिब्रिटी को जानते है. यही हाल है टिश्यू पेपर होल्डर और टिश्यू पेपर्स का. कूड़ेदान में जाना ही नहीं चाहते, फुदाक कर कूड़ेदान से बाहर फर्श पर पड़े रहते है. उन्हे शर्म तो ऐसी आती है जैसे अँगरेज़ी मीडियम से पढ़े हुए लौन्डो को सरकारी स्कूल जाना पड़ रहा हो.
फ्लश को चलाओ तो ऐसे गुराता है जैसे उसको नींद से उठा कर किसी ने उधार माँग लिया हो. और गुराएगा भी क्योंकि उसका काम ही ऐसा है, सारे किए कराए पर पानी फेरना. वो तो टाय्लेट पेपर्स के काम के बारे में सोच कर थोड़ा बेहतर महसूस कर लेता होगा नहीं तो किसी दिन फटकार बाहर ही आ जाए.
सारी बात यह है की अंदर का माहौल बहूत गरम रहता है, कोई किसी से बात नहीं करता, अब ऐसे माहौल को थोड़ा सामान्य करने के लिए ही वॉशरूम दरवाजे से सेट्टिंग कर के उसे सामान्य करने की कोशिश में लगा रहता है, क्योंकी जीतने लोग एक साथ अंदर होने बाकलोली उतनी ज़्यादा होगी...और वॉशरूम अपने गृहकालेह से उतनी देर के लिए बचा रह पाएगा.
क्योंकि हम आर्टिस्ट्स के लिए वॉशरूम बिल्कुल ही अलग अनुभव है. वॉशरूम ऐसी जगह है जहाँ ना चाहते हुए भी हर व्यक्ति दिन में दो बार तो आ ही जाता है, और किसी स्पेशल केस मे चार से पाँच बार. और कभी भी खुद को अकेला नहीं पता.
कई बार तो हालत ऐसी होती है की मैं कई लोगों से बस इस वॉशरूम में ही मिल पता हूँ मानो सहकर्मी कम और सहसूसूकर्मी ज़्यादा हो. अगर मैं इसे मिनी चौपाल कहूँ तो ग़लत नहीं होगा.सारे 18+ वाले चुटकुले सभी अपना सांस्कृतिक कार्यक्र्म प्रस्तूत करते हुए यहीं फोड़ते हैं. यहाँ भाईचारे का माहौल ये है की कई लोगों ने तो एक दूसरे की टाइमिंग भी नोट कर रखी है.
हम सारे आर्टिस्ट की क्रियेटिविटी का फ्लो यहाँ भी नहीं थमता. लोग तो यहाँ भी निशानची बनाने का कोई मौका नहीं छोड़ते, चाहे किसी की सीट पर कोई जाकर whats up पूछे ना पूछे, सू सू करते हुए ज़रूर पूछता है. शायद यह भी कोई रस्म ही होगी, या फिर इससे फ्लो सही रहता होगा. और वैसे भी जब से न्यू ज़ोइनी को हर आर्टिस्ट से सीट पर ले जाकर मिलवाने का रिवाज़ ख़तम हुई है पहली पहली बार उस न्यू ज़ोइनी से मुलाकात यहीं होती है, टिश्यू पेपर निकलते हुए. रात में अगर किसी की नींद पूरी ना हुई हो तो वॉशरूम मे कॅमोड पर बैठ कर पाँच मिनिट की झपकी ही ले लेता है. कहने को कहे तो हमारा वॉशरूम मिलने मिलने और जान पहचान बढ़ने का केंद्र बन गया है, बिल्कुल उस इलाक़े की तरह जो शहर में तो बदनाम गलियों के नाम से जाना जाता है पर अंदर काफ़ी खुशनुमा माहौल रहता है. मेरा तो यहाँ तक मानना है की हर ऑफीस में सामूहिक सदभाव का केंद्र घोषित कर देना चाहिए.
अब देखने को यहाँ दो रंग है एक तो वॉशरूम के परिवार का आपसी विवाद और दूसरी तरफ हमारा खुशनुमा माहौल.
मुझे लगता है हमारी बाकलोलियों से वॉशरूम को थोड़ा सुकून ज़रूर मिलता होगा. इसलिए जब भी दरवाज़ा खुले आप अंदर घुस जया करो भगवान कसम वॉशरूम हमें इतना कुछ देता है हमें भी उसका उधर समय रहते ही चुका देना चाहिए, और वो दोस्त क्या दोस्त जो एक दूसरे के काम ना आए.
...और रही बात लेडिज़ वॉशरूम की तो अगर कभी उधर जाने का मौका मिला तो उसके बारे मे भी बताउँगा.
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