Tuesday 2 September 2014

बांझ सोच

कुछ स्वमैथुन के मारे बेचारों को लगता है,
कि सूरज उनके लिंग के चक्कर काटता है,
क्योंकि वो किसी एक विशेष योनि की पैदाइश हैं.
ईश्वर से सीधा नाता है इनका,
और स्वर्ग में सीटें आरक्षित हैं इनकी.
जिस ईश्वर को इन्होनें कभी जाना ही नहीं
और ना ही जानने की कोशिश की
बस सच से आँखें मुन्दे हुए
अपनी ही दुनिया मे खुश हैं साले.

बांझ ज़मीन से दिखते है और उतने ही अनुपयोगी भी,
कि इनपर कोई नया ख़याल नहीं पनप सकता.
बस हर बात पर तान कर बैठ जाते हैं, उतावले,
अपने लिंग का आकार बताने को
जिसमें खुद इनका कोई योगदान नहीं.

ये कुछ सदियों पहले हुई
किसी दुर्घटना का परिणाम हैं,
पर हँसी आती है मुझको
इनको खुद पर इतना क्यों अभिमान है?

© Neeraj Pandey

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