इतने सारे दिनों
के बीच
कुछ सिगरेट सा मिलता
है ये वीकएंड,
होठों से लगा,
थोड़ी देर कश
लेकर
अपने सीने के
अंदर उतार लेता
हूँ|
घुलकर बहता है
जब धुंवा इसका
मेरे जिस्म की नाड़ीयों
में
मीटा देता है
थकान पूरे हफ्ते
की,
थोड़ा सुरूर आ जाता
है,
थोड़ा सुकून आ जाता
है|
कई बार आधी
पी कर बचा
लेता हूँ
इसका दूसरा हिस्सा,
कि, कभी तलब
के वक़्त काम
आएगी|
कई बार कम
पड़ जाती है
ये दो दिनों
की सिगरेट भी,
शायद अब इसकी
लत पड़ती जा
रही है,
ये अब आदत
बनती जा रही
है|
कई बार ना
चाहते हुए भी
बूझा देना पड़ता
है, उसे गरदन
से मरोड़ कर
पास की रखी
ऐश ट्रे में,
कि मंडे का
बुलावा आ गया
अब सब छोड़कर,
काम पर लगना
होगा
अगली सिगरेट के इंतज़ार
में|
सिगरेट सा, बिल्कुल
सिगरेट सा
मिलता है ये
वीकेंड|
© Neeraj Pandey