Wednesday 1 October 2014

बिछड़े साथी

वो चेहरे अब धुंधले से दिखते हैं मानों कोहरे में खड़ा हो कोई .
गौर से देखता हूँ पर ठीक से पहचान नहीं पाता| वक़्त ने उन यादों पर भी मानों धूल सी जमा दी हैं. ...अब चाहे अच्छे थे या बुरे बीती रात के सपने किसे याद रहते हैं.

© Neeraj Pandey