हर गर्मी की कोशिश होती है
ज़रा सी ठंढक में घुल जाना,
और वैसी ही कोशिश
ठंडक की गर्मी की तरफ.…
रात दिन में घुल जाती है
और दिन बढ़ता है धीरे धीरे
रात की तरफ.…
समंदर का पानी भी घुल रहा है
बादलों में,
फिर.… बादल भी नदी में बहकर
घुल जाते हैं समंदर में
जीवन काल में घुल रहा है
जैसे पल पल.…
काल भी धीरे धीरे
जीवित हो उठता है ।
सब कुछ घुल रहा है,
एक दुसरे में जैसे,
खुद को थोड़ा थोड़ा खोकर
घुल जाना ही
जीवन की शुरुआत है ।
© Neeraj Pandey
© Neeraj Pandey