Tuesday 9 June 2015

ग़ार्बेज इन ग़ार्बेज आउट...


हम पैदा किए जा रहे हैं, ऐसे लगातार...
जैसे फोटो स्टेट की मशीन
ऑटोमोड़ पर डाल रक्खीं हो |

वो  जितनी भी औरतें कर रक्खीं हैं
पेट से  हमने...
हमारी गलती थी ही नहीं,
हम कामुक इतने थे कि ये काम तो बकरी
 या किसी जानवर से  भी ले लेते हम |

ये जो रेंग रहे हैं, हमारे आस्  पास
हमें अपना 'बाप' बतलाते
और हम भी जिनको ठाट से
 बतला रहे  हैं... ' भविष्य'
दरअसल इनके पाँव अभी भी
भूतकाल  में लटके हैं|

ये जो विचारों से गूँगे बहरों की फौज खड़ी कर रक्खीं है,
ये भी हमारी तरह भीड़ में भेड़ बनने वाले हैं|

... और अगर हमने पाल  रक्खीं है कोई गलतफहमी
इनके अ‍ॅलौकिक होने की
तब यही जानना बेहतर होगा
ये हमसे भी बद्त्तर मौत मरेंगे|

जीवन दर्शन के नाम पर हमने बांचे हैं बस...
कुतर्क
और करनी के नाम पर...
हवस की गैर जिम्मेदाराना हरकतें|
विरासत में  हम दे  जाएंगे इन्हें
गिरते बाल, बढ़ते पेट,
गंदी शक्ल और बांझ सोच...

क्योंकि कल निकलेगा इसी आज से,
और आज में हमने कर रक्खीं है
खूब सारी टट्टी |

ग़ार्बेज इन ग़ार्बेज आउट...

© Neeraj Pandey