Monday 9 November 2015

संभावनाएँ

तुम निकल रही हो
अपनी संभावनाओं की तलाश में,
पर छोड़ जा रही हो
एक बिंदु मेरे पास...

बिंदु, जिसमें संभावनाएं थी
लकीर बनने की
लकीर, जिसके साथ हम तय कर सकते थे
क्षितिज तक की दूरी
या शायद उससे भी कहीं पार...

मैंने उस बिंदु को फिलहाल
रख लिया है संभालकर,
अपनी हथेलियों में दबाकर,
तिल बनाकर,
कि
तुम्हारे वापस आने पर
जब कभी संभावनाएं अनुकूल होंगी,
ये तिल जीवन रेखा में बदल जाएगा,
वो बिंदु लकीर हो जाएगी|

© Neeraj Pandey

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