Saturday 19 December 2015

सहना और जीना

वो जो तैयार कर रहा है
उसका सुख वो कभी जी नहीं पाता।

वो तो बस सहता है
इसके तैयार होने को,
इसके तैयार होने तक,
एक न्यूनतम मजूरी पर,
हर क्षण...

और एक दिन चुपचाप
वक़्त के सरकने पर
धीरे धीरे सरकता हुआ
अपनी शक्ल समेटता
वो हो जाता है कहीं गायब,

फिर सालों बाद
कोई और आकर
भोगता है वो सारा सुख
जो उसने कभी सह सह कर
पार किया था।

मैंने भी कई बार पलट कर
देखा है
तो चकित हुआ हूँ,
वो कौन था जो सह रहा था
वर्षों से?

क्योंकि, अब जो ये जी रहा है
वो, वो नहीं है।
सहने वाला हर बार निकल जाता है
शांत क़दमों से,
और फिर मैं ढूँढने लगता हूँ
खुद को
उस सहने वाले और इस जीने वाले के बीच कहीं।

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