Saturday 3 February 2018

उस 'छिछोरे' लड़के से मैंने दोस्ती कर ली...


...उससे मेरी अक्सर लड़ाई चलती रहती थी। लड़ाई तो नहींपर हाँ खींच तान तो थी ही। वो अपने मन का कुछ कर जाता और बिल मेरे नाम पर फटता था। ये बात सिर्फ़ बाहर की नहीं थी। दरअसल बाहर की तो थी ही नहीं अंदर की लड़ाई थी जो बाहर दिखती थी। क्योंकि जब कोई नहीं होता था आसपास फिर भी यह ख़ुद के साथ चलती रहती थी। एक हिस्सा कुछ और था और दूसरा कुछ और बन जाने की कोशिश करता था। एक वो था जिसने बचपन में नैतिक शिक्षा की किताब पढ़ी थी और सब वैसा ही करना चाहता था और एक दूसरा जो थोड़ा छिछोरा था। नहीं वैसा वाला छिछोरा भी नहीं जैसा आप सोच रहे हैं पर मुँहफट्ट से थोड़ा ऊपर और मनमौजी ज़रूर था। उसको ज़िंदगी जैसे रही थी वैसे जीना था। पर हमेशा मैं उसे गिल्ट देता रहता था क्योंकि आसपास के माहौल को देखकर मुझे लगता था कि ये बड़ा मिसफ़िट सा है। तो उसको थोड़ा छुपा करसम्भाल कर रखने की कोशिश करी। वो अजीब ही था... कई बार किसी बड़ी से बड़ी बात पर उसको फ़र्क़ नहीं पड़ता था और कई बार छोटी से छोटी बात भी उसको रुलाने के लिए काफ़ी थी। वह छोटी छोटी बातों पर ख़ुश हो जाता था। किसी की मौत पर तो रोया ही नहीं वोथोड़ी उदास होने की ऐक्टिंग जैसा कुछ कर लेता था। पर बाहर यह सब कहाँ ऐक्सेप्ट किया जाता तो मैं भी उसको दबा के रख़ता। एक पर्दा कर के।

'नहीं नहीं ये तो बस...बदल दूँगा मैं इसको। आपको अच्छा नहीं लग रहा तो क्यूँ रखना' जब इंसान थोड़ा अभाव में बड़ा होता है तो ऐसे ही ख़ुद को दूसरों की नज़र से जज करता है। दूसरे उसके बारे में क्या सोचते हैं उसके लिए ज़्यादा मायने रखता है बजाय इसके कि उसका सच क्या है। कोई ज़रूरी नहीं कि वो आर्थिक या सामाजिक ही हो यह अभाव किसी भी चीज़ का हो सकता है। बड़ा होने पर आदमी जो ढूँढता है दरअसल वो उसका बचपन का अभाव ही तो है।

अब इस छिछोरे को कई बार कई लोगों से बदला भी लेना है जिन्होंने उसे नीची नज़रों से देखा था। बताओकितनी छिछोरी बात है येकोई भी सभ्य आदमी तो ये ख़ुल्लम-ख़ुल्ला थोड़े ही मानेगा। There is a way to say things like these. इसीलिए मैं इसे थोड़ा छिछोरा कहता हूँ। पर वो वैसा ही है। किसी के सामने भी ऐसा आदमी आएगा तो लोग उसे जज तो करेंगे ही। पर ये हर बार मेरे ख़ुशियों का हिस्सा बनता है। सुख का साथी है ये। जब भी जीवन में कुछ अच्छा सा होता वो हर बार ऐसे बाहर निकलकर आता है जैसे उसपर उसका अधिकार हो। इसको जिस चीज़ में मज़ा आता है उसमें आता है। अपनी तारीफ़ को गले लगा कर ऐक्सेप्ट करता है। ज़बरदस्ती हम्बल बनने का दिखावा नहीं करता। वो कान में ईयरफ़ोन लगा कर गाने बजाता हुआ सड़क पर ऐसे चलता है जैसे आसमान पर चल रहा हो। सामने से भीड़ हटती चली जाती है और वो अपना सर उठाए चलता जाता है। उसे वो सब कर के देखना है जो उसे बचपन में उससे दूर था या जो उसके पास आने नहीं दिया गया। वो 'हाँसुनकर 'नाकरना चाहता है। यह जानते हुए भी कि भौतिकता जीवन के सवालों का जवाब नहीं है वो उसके चरम को पाना चाहता है। 'देखा तो जाए क्या रखा है दूसरी तरफ़।' अगर दिमाग़ में भी जीना है तो वो अब जीतते हुए जीना चाहता है। 

दूसरी तरह मेरे जीवन की सच्चाई कुछ और है। जहाँ मेरे बड़े बड़े सेल्फ़ डाउट हैंरातों के जगराते हैंफ़ीडबैक्स हैं, ना पढ़ी हुई किताबों की लिस्ट हैख़ुद से काफ़ी बेहतर दिखते लोग हैं और बहुत कुछ सीखने को पड़ा है। मैं उसे ये सब बता ही रहा था कि उसने मुझसे कहा कि वो इस दुनिया को ख़रीद लेना चाहता है। मैंने पूछा 'क्यूँ भाईमैं जो बोल रहा हूँ वो समझ नहीं रहादुनिया ख़रीद के क्या मिल जाएगा तुम्हेंथोड़ा तमीज़ में रहा करो।तो कहने लगा 'दुनिया को ख़रीद कर उसको आज़ाद कर दूँगा' मैं उसका जवाब सुनकर चौंक  गया। अब यही बातें मैं किसी को बता दूँ तो सामने वाला इसको सीधा जज कर लेगा। पर वो वैसा ही है। उससे दो-दो हाथ कर के कोई फ़ायदा नहीं। सालों से लड़ कर अपना वक़्त ही ज़ाया किया है।  यह लिखते हुए उसने मुझे सिल्वर कलर के जूतों की याद दिला दी कब ले रहे होमुझे चाहिए’ उसने कहा। मैं उसकी यह बात पिछले दो महीनों से इग्नोर कर रहा हूँ। अब आप ही बताओ लेख़क सिल्वर कलर के शाइन वाले चमकीले जूते पहनकर घूमता हुआ ठीक लगता है क्यासाथ वाले तो यही कहेंगे ना कि हवा लग गयी इसको’ पर ये ऐसा ही है। यह सबसे ऐसे ख़ुश  होके मिलता है जैसे पहली बार मिल रहा होफ़ोन पर दोस्तों को 'I LOVE YOU TOO' कर के बात करता हैइसे कुछ चीज़ें जैसी पसंद हैं वैसी ही चाहिएये कुछ गालियाँ देता है तो अब बस देता है। मैं भी अब लड़ता नहीं इससे। क्योंकि इससे पार पाना अपने बस का नहीं। अब मैं इसके साथ चलता हूँ इसको इसकी हरकतें करने देता हूँ और उसके मज़े लेता हूँ। ये मुझे हँसाता भी है और इस बोझिल हो चुकी दुनिया में रंग भी डालता है। ये बिना पिए पार्टी में ऐसे नाचता है जैसे कितना नशा हुआ हो। मैं थोड़ी देर रुककर बस उसे देख लेता हूँ। उसको ख़ुश देखकर मुस्कुरा देता हूँ। यही मेरा नशा है। इस सालों से चलते आंतरिक मुक़दमे में वो जीत गया है। उसको उसके हिस्से की जगह मिल गयी है जिसपर उसका हक़ हमेशा से था। 

वैसे फ़िलहाल इसे ऐमज़ॉन पर सिल्वर कलर वाले जूते देखने हैं तो मैं इसके साथ जा रहा हूँ। आज फिर उसको टालने के लिए एक नया बहाना देना होगा।

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