Wednesday 18 August 2021

डायरी से...

 

16th March: 2020

 

मैं बंद मुट्ठी मेंतुम्हारी-मेरीकहानी जैसा कुछ लेकर घूमता रहता था। एक दिन तुम्हारे पास आकर मुट्ठी खोली और तीखे बताया किदेखो ये शायद हमारी कहानी है।तुमने मेरी हथेली पर रखी उस कहानी को देखा और मुझसे कहा कि उसमें तुम्हारी कहानी नहीं थी। तब मुझे समझ आया कि मैं अपनी कहानी लिए तुम्हारे हिस्से की ज़मीन भी नाप रहा था। मैं चला जा रहा था। मैंने अकेले हीहमारे साथकी इतनी यात्रा कर ली थी कि मुझे लगने लगा मैं इस धरती से ज़रा सा ऊपर चल रहा हूँ। धरती से ऊपर चलनातुम्हारी-मेरीकहानी में सामान्य बात थी। और इस बात का एहसास उस कहानी ने ही कराया मुझे। पर जब तुमने कहा कि उसमें तुम्हारी कहानी नहीं है मैं ज़मीन पर गया। सामान्य लोगों की तरह चलने लगा। फिर बड़े दिनों के बाद एहसास हुआ हुआ कि जब मेरे पैर ज़मीन पर पड़े थे तो एक काँटा मेरे पाँव में चुभ गया था। वो तब पता नहीं चला था... पर अब जब जब मैं चलता हूँ वहाँ एक टीस सी उठती है। उस टीस मेंतुम्हारी-मेरीकहानी अभी भी शामिल है। 


8th April: 2020

 

कल रात हल्की नींद में मौत आने वाली थी। बस लगा ही था कि ये मैं आख़िरी बार लेट रहा हूँ अब उठ नहीं पाउँगा। पर मैं उठ गया सुबह। पर एक दिन ऐसा ही तो होगा एक दिन हम सोने जाएँगे, पलकें आख़िरी बार बंद होंगी और फिर हमारी सुबह कभी नहीं होगी। हम जब भी विदा होने वो हमारी रात होगी। तो मैंने जब आँखें बंद करी तो कुछ देर तक अपनी ही ज़िंदगी का एक सफ़र सा ग्राफ़ बन गया। लगा जैसे एक कहानी चल रही हो। यह ना तो अधूरी थी और ना ही पूरी वो बस थी जैसे बाइस्कोप में चलती हुई फ़िल्म। जो कहीं से भी शुरू होकर कहीं ख़त्म हो जाती है।

 

इस बीच मुझे अपनी मृत्यु के ख़याल लगातार आ रहे हैं। क्या अगर यही था जीवन जो जी लिया? ऐसे सोचने लगूँ तो जीवन बहुत छोटा सा लगता है। जैसे एक बड़े केक से एक छोटा सा हिस्सा निकाल कर किसी ने दिया कि ये तुम्हारा हिस्सा है। मैं बाक़ी उस केक को भी देख रहा हूँ जो खाया जा सकता था। क्या मैं लालची हूँ? या मुझे ज़िंदगी से मोहब्बत है?

 

एक एक दिन करता हुआ यहाँ तक जो आएँ हैं, जो बनाया है वो कहानी है पर इसके आगे क्या होगा? क्या हम यह जान सकते हैं कि आगे क्या होगा? नहीं, मुझे नहीं जानना कि आगे क्या होगा। मुझे बस कामना करनी है “आगे क्या हो सकता है” की, क्योंकि अब तक जो हुआ है वो जानकर नहीं किया जा सकता था। और ये सब ख़ूबसूरत है। मैं बस कामना कर सकता हूँ। कामना ये कि जब आज बिस्तर पर सोने जाऊँ तो कल सुबह उठकर एक नयी कामना कर सकूँ।

 

 

11th April: 2020

 

किसी से एक बार मिलकर हम उससे कितना मिल पाते होंगे? जो हमें उनमें उस वक्त दिखता है वो सारा तो नहीं हो सकता। वह तो उसका एक हिस्सा था जो बस हमारे पास छूट गया। पर हमारे वहाँ से गुज़र जाने के बाद भी कुछ बहुत सारा वहीं बचा हुआ रह जाता होगा, जहाँ हम उनसे मिले थे। किसी से कितनी बार मिलने के बाद यह बात ठीक ठीक कही जा सकती है कि “हम उन्हें जानते हैं?” मैंने जब भी कोई किताब पढ़कर पूरी की तो मैंने ख़ुद से सवाल किया है कि मुझे उसमें क्या पसंद आया है? इसका ठीक ठीक जवाब मैं ख़ुद को कभी नहीं दे पाया, ठीक वैसे ही जैसे तुमसे एक बार मिलकर ठीक ठीक यह नहीं बात सकता कि मुझे तुममें क्या पसंद आया? मैं अपनी ऊँगली रखकर यह कभी नहीं बता पाउँगा कि उस क्षण में क्या जादू सिमटा हुआ था। पर एक इच्छा है जो लगातार चलती रहती है... थोड़ा और जानने की। एक बार फिर से मैं हर वो किताब पढ़ना चाहता हूँ जो मुझे पसंद है, जैसे एक बार तुमसे और मिलने की इच्छा। मैं दोनों से गुज़र कर हर बार ख़ुद को कहीं और खड़ा पाया है। हर एक किताब ख़त्म करने के बाद मैं वो नहीं रहा जिसने वो किताब पढ़ना शुरू किया था ठीक वैसे ही जैसे तुमसे फिर एक बार मिलकर मैं कुछ और हो जाऊँगा।

 

 

 

17th May: 2020

 

शरीर नींद में था और हल्का टूट रहा था। बीती रात ठीक से सो नहीं पाया था मैं। इसलिए दिन में थोड़ी देर सो गया। अलग अलग तरह के सपने आने शुरू हुए, एक बहुत पुराना स्कूल का दोस्त फिर से मिला सपने में, पर मुझसे ज़्यादा बात नहीं की उसने। मुझे भी बहुत वक़्त लगा उसका नाम याद करने में। अभी फिर उसका नाम याद कर रहा हूँ पर ठीक ठीक याद नहीं कर पा रहा। फिर थोड़ी देर बाद मैं कहीं और था, एक घर में, बाल्कनी में खड़ा हुआ, तुम भी वहीं थी। तुम पास आयीं और मेरी हथेलियों में अपनी हथेली रखकर मेरे पास खड़ी हो गयी जैसे किसी बड़ी कटोरी के अंदर एक छोटी कटोरी रख दी जाती है। मुझे यह छुवन पता थी, शायद इसलिए कि मेरी कल्पना में मैं इसे कई बार जी चुका हूँ। एक पल के लिए मैंने तुम्हारी तरफ़ देखा और तुमने सर हिला कर एक स्वीकृति दी। इस पल पर तुम्हारी मुहर थी जैसे कोई अर्ज़ी किसी ने पूरी कर दी हो। अचानक वो पल इतना ख़ूबसूरत हो गया कि मुझे इस बात का यक़ीन हो गया कि यह सच नहीं है। सारी कल्पनाएँ जिसमें साथ घूमने से लेकर तुम्हारा हाथ थामना और तुम्हें हल्के से चूम लेना है उस वक़्त में पूरी होती दिखीं। टूटते हुए शरीर को समझ आ गया कि यह सच नहीं है, सपना है। अब सपना टूटने का डर था। पर मैं नहीं चाहता था कि ऐसा हो, तुम्हारे साथ होना ख़ूबसूरत था। अगले ही क्षण मैंने ख़ुद को बड़बड़ाता पाया कि “नहीं, आँख मत खोलना, आँख मत खोलना” और मैंने आँख नहीं खोली और थोड़ी देर वो जिया जो सुंदर था। उस सपने के संसार में और भी अलग संसार शामिल हुए और कुछ का कुछ बन गया। पर तुम्हारे साथ होने का सुख अभी भी टूटते हुए शरीर के किसी हिस्से में छिपा पड़ा है, कभी और लौटकर आने के लिए।

 

सोचा तुम्हें बताता हूँ तुम्हें कि ऐसा हुआ पर नहीं किया। फिर सोचा पहले लिख लेता हूँ उसे, क्योंकि लिखते हुए मैं शायद उसे एक बार और जी लूँ। तुम्हें इसे बताने का ख़तरा है यह है कि कहीं वो इसे महसूस करने का आख़िरी बिंदु ना हो जाए। तब तक मैं उसे एक बार और ऐसे महसूस कर लूँ जैसे सुबह पीला सूरज फैलता है तुम्हारे चेहरे के एक हिस्से पर, तुम्हें छू कर हल्का सा बिखरा हुआ।

 

18th May: 2020

 

एक बहुत सुन्दर सपना देखते हुए अचानक नींद खुल जाती है और मैं सोचने लगता हूँ जो मैं नींद में जी रहा था। वो बहुत सुन्दर सपना था। वो अभी भी सामने हल्का हल्का तैर रहा है पर थोड़ी देर में धुँवा बनकर उड़ जाता है। अपनी खिड़की पर बैठा, उसे जाते हुए मैं चुपचाप देखता रहता हूँ। सपने का सुख जब अपनी जगह छोड़ता है तो उसकी जगह एक हल्की सी टीस लौट आती है। सोचता हूँ अब ये जो टीस उठी है इसे लिख लूँ या जी लूँ? इस ख़याल को लेकर मैं थोड़ी देर उसी कमरे में टहलता हूँ और ख़ुद पर हँसी आ जाती है। मैं समझ नहीं पता कौन सी टीस जीने के लिए है और कौन सी लिखने के लिए। यह सब सोचते हुए मैं अपने कम्प्यूटर पर एक गाना चलाता हूँ “फिर वहीं रात है, फिर वही रात है ख़्वाबों की”

 

16th August: 2020

तुम नहीं थे एक रुपए में एक अठन्नी कम थी। मैंने पूरे मन से वो अठन्नी अपनी जेब में रख ली। बाक़ी की अठन्नी मन ढूँढ रहा था... जानता था नहीं है फिर भी ढूँढता रहा... बहता रहा। एक उदासी भरी नाराज़गी फिर से जीभ के नीचे चिपक गयी। मैं वहीं खड़ा चुपचाप खुद को तुमसे गुज़रते हुए देख रहा हूँ। चिट्ठियों का ज़माना नहीं है पर मैंने वैसे कई बहाने भेजें हैं तुम्हें... यही सोचता हुआ मैं घर आ गया। घर में ऐसे दाख़िल हुआ जैसे रोज़ होता हूँ। अकेला कमरे की बत्ती बंद करी और सलमा अग़ा की प्लेलिस्ट चला ली। वो गा रहीं हैं...उनकी आवाज़ वो मेरे अंदर चलते एक शांत पर सुन्न रास्ते से कितनी मिल रही है। मैं उस अठन्नी को लेकर उलट पलट कर देखता हूँ... सलमा हर एक पल को ढूँढता, हर एक पल चला गया गाती हैं।

 

 

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