Monday 7 April 2014

उत्सव बलिदान का


बकरे सारे खुश हो रहे हैं 
कुछ अच्छा होने वाला है ... 
सुना है ईद आ रही है, 
मंदिर भी बनाने वाला है. 

हर बार यही क्यों होता है, 
इतिहास खंघाला जाता है... 
उज्वल भविष्य की शर्तों पर फिर 
इनको कटा जाता है| 

कुछ बकरे ये भी सोच रहे 
चलो अपना बलिदान सही... 
शाहिद तो हम कहलाएँगे 
वो अपने भगवान सही| 

पर ये तो रस्म है उत्सव की, 
ऐसा ही होता दिखता है... 
माँस शहादत तक का यहाँ 
दुकानों में बिकता है| 

अपना हिसाब भी लगा रहा है, 
जो दुकान का लाला है... 
सुना है ईद आ रही है, 
मंदिर भी बनने वाला है|