Saturday 2 January 2016

क्यों? ठीक ठीक पता नहीं

(कांदिवली से एयरपोर्ट, के दौरान  1/1/16. 10:20 P.M. मुंबई .)
अभी अभी मुम्बई एयरपोर्ट पहुँचा हूँ, सौरव से मिलने। आदतन मैं जल्दी पहुँच गया और सौरव के आने में अभी थोड़ा वक़्त है। मैं अभी एक कमाल की ख़ुशी से भरा हुआ हूँ। वजह मुझे पता नहीं। सोचा किसी को फ़ोन कर के अपने अंदर अभी जो भी चल रहा है वो बाँट लूँ। फिर यह सोच कर रहने दिया कि इसको लिख लेना ज़्यादा बेहतर होगा। अक्सर मेरे दोस्तों की शिकायत जो मेरे तनाव को लिखने के लिए रहती है, शायद इससे थोड़ी कम हो सके।
मुम्बई में हल्की ठण्ड का मौसम है। ठण्ड इतनी ही की मैं हाफ टीशर्ट पहन कर बैठा हुआ हूँ।  हाँ सर्दी की इज़्ज़त रखने के लिए सर पर एक कैप ज़रूर डाल ली है। थोड़ी देर पहले ही एक कविता लिखी थी और अब सौरव से मिलने निकल पड़ा। कांदिवली के हाईवे से मैंने बस ली, मैं पहली बार एयरपोर्ट  बस से जा रहा था तो आशंका थी कि अगर ट्रैफिक मिला तो मैं कहीं लेट ना हो जाऊँ। इसलिए घर से पहले निकल लिया था। सड़कें और बस दोनों आज उम्मीद से बहुत ख़ाली दिख रहे थे। मैंने कंडक्टर से टिकट ली और पीछे से 2 सीट्स छोड़ कर खिड़की पकड़ पर बैठ गया। बस चली जा रही थी एक के बाद एक फ्लाईओवर फांदती हुई। खिड़की से हल्की ठंढी हवा बस के अंदर आ रही थी, मुझे अच्छा लगने लगा। और एकाएक मैं वो तमाशा का गाना "वत वत वत..." का अंतरा गाने लगा।
"ओ.. हम हमहीं से, तोहरी बतिया
कर के बकत बतावें हैं,
खुद ही हँसते, खुद ही रोते,
खुद ही खुद को सतावें हैं..."
मैं ज़ोर ज़ोर से गा रहा था,जैसे बस की रफ़्तार से कोई मुक़ाबला हो। इस बात का एहसास मुझे तब हुआ जब मेरे सामने की सीट पर बैठी हुई लड़की ने पलट कर मुझे देखा। मुझे एक पल के लिए लगा कि उसको अजीब लगा पर वो एक स्माइल दे कर दुबारा सामने की ओर देखने लगी।
तभी बस का एक झटका आया और मैं सीट पर अपना बैलेंस खोने लगा।गाने का 'बेसुर' बार बार
बिगड़ रहा था|  पर मुझे अभी गाना गाने में मज़ा आ रहा था। एक ख़ुशी मिल रही थी| पता नहीं क्यों मुझे जब भी ऐसा कुछ अच्छा लगता है, मुझे दिल्ली की याद आने लगती है। मुम्बई का हाईवे दिल्ली का रिंग रोड बन गया और बेस्ट की बस 'DTC' की। फिर मुझे एहसास हुआ कि अगर टायर के ऊपर वाली सीट से हटकर पीछे बैठ जाए तो शायद सीट इतनी ना हिले, और इस लड़की से थोड़ा फासला भी बढ़ जाएगा। फिर क्या था, मैंने पीछे देखा, सीट पूरी तरह से खाली थी। मैं कूदकर उसपर बैठ गया। पर मैंने इस बार सामने वाली सीट का रॉड पकड़ा, खिड़की की तरफ झुककर बैठा जैसे बच्चे किसी amusement पार्क में किसी राइड पर बैठते है। बस हाईवे पर वैसे ही दौड़ती चली जा रही थी, हवा वैसे ही हल्की ठंडक बस के अंदर ला रही थी। सीट का हिलना अभी भी वैसा ही था,  मैंने गाना चालू रखा, और वहीँ बैठे बैठे एक ख़ुशी से भरता गया। जिसकी वजह का मुझे अभी भी ठीक ठीक पता नहीं| एयरपोर्ट का स्टैंड अभी आया नहीं था, पर अब तक गाने का दूसरा अंतरा आ गया था... :)
"जान गए लेके सुर्खी कजरा
टेप टाप के, लटके झटके
मार तू हमका फँसावत...
पर ई तो बता
तू कौन दिसा, तू कौन मुल्किया
हाँक ले जावे...
हौले हौले बात पे तू
हमारी वाट लगा..."
...बस कहीं और ले जा रही थी और मैं कहीं और ही चला जा रहा था।
- नीरज


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