Monday 4 January 2016

आस्था भी कोई चीज़ है |

वो शिरडी से दर्शन कर के आये थे । एक हाथ से साई बाबा का गुणगान किये जा रहे थे और दुसरे से अपनी आस्था बघार रहे थे । बता रहे थे कैसे वहाँ धर्म कर्म के काम में उन्होंने बढ़ चढ़ कर दिलचस्पी ली। कैसे उनका जीवन साल में बस एक बार शिरडी के दर्शन करने मात्र से सुचारू रूप से चलता रहता है। मैं भी हाथ जोड़े और मुँह फाडे सब सुन रहा था । भई आस्था तो मुझे भी है। तभी उन्होंने अपनी नाक छिनकी और अपनी शर्ट में पोंछते हुए बोले " ट्रेन के सफर में ठंड लग गई।" फिर थोड़ी देर बाद रुक कर ऊपर उँगली दिखाते हुए बोले "चलो अब सर्दी भी तो उसी की माया है। बाबा सब हर लेंगे। बस हमारी आस्था और उनकी कृपा बनी रहे। जय साई राम । " 'कृपा' शब्द सुनते ही मुझे याद आया कि बातों बातों में मेरा अपना आध्यात्मिक कार्यक्रम छूट रहा था। मैंने टीवी ऑन किया और 'निर्मल बाबा ' वाला प्रोग्राम लगा कर बैठा और हाथ जोड़कर सुनने लगा। कृपा आनी शुरू हो गई थी। और मेरे पीछे खड़े वो ये सब देख कर अपनी नाक छिनकते हुए बड़बड़ाते रहे " अरे चूतिया हो क्या?… ऐसे भी कहीं कृपा आती है… , बेवकूफ बना रहा है वो.… , अरे तुम तो पढ़े लिखे हो… वगैरह वगैरह… " पर मैं भी उनको इग्नोर कर के अपनी आस्था में लगा रहा । क्योंकि जब मेरी नाक बहती थी तब 'निर्मल बाबा ' की कृपा से ही ठीक होती थी । मैं कृपा बटोरता रहा, वो बड़बड़ाते रहे …

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