Thursday 15 March 2018

आज मौसम बदला (लास्ट पोस्ट से जुड़ा हुआ)

पिछली पोस्ट में ही लिखा था कि कैसे मुझे बारिश का इंतज़ार है और कैसे इस ख़ुशनुमा मौसम की तलाश में मैं देहरादून जाने वाला हूँ। कल देहरादून के लिए निकल रहा हूँ। पहले दिल्ली जाऊँगा फिर वहाँ से निखिल की कार में रोड के रस्ते देहरादून। 
आज कल सोते हुए काफ़ी देर हो जाती है और वही मेरे देर से उठने का बहाना भी है। मुझे यह पसंद नहीं, ऐसा लगता है जैसे दिन का एक हिस्सा बिना जीए बिना कुछ किए ही बीत गया। कल सुबह उठते हुए भी दस से ज़्यादा बज गए थे।यह कोई  बहुत अच्छा एहसास नहीं है।आदत ठीक करने की कोशिश जारी है...  जब दिन सुस्त शुरू होता है तो उसकी ऊँगली पकड़े हुए बाक़ी का दिन भी वैसे ही सुस्ताता सा रहता है। कल तो बाहर जाने का मन भी नहीं था। मीटिंग्स कैन्सल कर दी थीं और घर पर ही कुछ लिख पढ़ रहा था।पर कल घर पर ही रहने से एक अच्छी बात यह हुई कि मेरा पास्पोर्ट का पोलिस वेरिफ़िकेशन हो गया जो बहुत टाइम से पेंडिंग पड़ा हुआ था। कुछ डॉक्युमेंट्स जो  Police Station में देने हैं उसके लिए भागदौड़ भी की क्योंकि मुझे ये सब ठीक से निबटाकर कल देहरादून के लिए निकलना है। बीच में एक बार ऐसा भी लगा था कि शायद यह ट्रिप कैन्सल करनी पड़े पर ऐसा नहीं है।

पर आज भी मैं दस बजे के आसपास ही खुली। दिमाग़ में दूसरा ख़याल यही आया कि Police Station का काम कराना है। तो आज बिना नहाए धोए सारे डॉक्युमेंट्स लेकर Police Station ही गया।पर आज मन में देर से उठने का चिड़चिड़ापन नहीं था। वजह ये थी कि इस सारी भागदौड़ के बीच मौसम काफ़ी ख़ुशनुमा था। हल्के हल्के बादल छाये  हुए थे (अभी भी हैं) और माहौल की ठंडक बैंगलोर के मौसम की याद दिला रही थी। ख़याल आया कि 'बताओ हम मौसम ढूँढने कल देहरादून जा रहे हैं तब जाकर यहाँ का मौसम बदला है।'  भर की ताज़गी अंदर की तरफ़ अपना रुख़ कर रही थी।

Police Station के दो चक्कर लगे, थोड़ी भाग दौड़ हुई पर सब आराम से हो गया। शुक्रिया टू द मौसम। सोच रहा हूँ देहरादून में अगले दो दिन मौसम के साथ पहाड़ भी होने पर जो लोग किंहि वजहों से मुंबई से बाहर नहीं जा पा रहे उनके लिए तो यह एक सुकून होगा ही। बीच बीच में ऐसा मौसम होना चाहिए। अब देखते हैं देहरादून का मौसम कैसा होता है,  मैं पहली बार जा रहा हूँ कुछ सोच कर ना ही जाऊँ तो बेहतर होगा। कल को कल में ही खुलने के लिए छोड़ना बेहतर है। जब पहली बार बैंगलोर भी गया था तो बैंगलोर ने चकित किया था। वो चकित होने जगह छोड़ कर रखना ही ठीक है।

फ़िलहाल तो बाहर के काम निबटा कर, नहा धोकर, एक अच्छी सी चाय बनाकर अपनी वर्किंग डेस्क पर बैठा हूँ।  जाने से पहले कुछ लिखने का काम है जो आज रात तक निबटाना है। एक साफ़ साफ़ डेस्क है, जिसके बग़ल में एक हरा मनी प्लांट रखा हुआ है, दो किताबें जो मैं एक साथ पढ़ रहा हूँ वो हैं, ऊपर से पंखा अपनी हल्की हल्की हवा फेंक रहा है, मैंने खिड़की पूरी खोल ली है जहाँ से कबूरतों की आवाज़ और ठंडी हवा अंदर आ रही है और मैं लिखने बैठ गया हूँ..।

No comments:

Post a Comment