Friday 2 March 2018

14 साल बाद



नीतीश, मेरा स्कूल का जूनियर.14 साल बाद मिला. 2004 में स्कूल ख़त्म होने के बाद मैं दिल्ली चला आया था. स्कूल की यादें बहुत अच्छी थी नहीं और ना ही कोई दोस्त, तो मैं खुश था एक ऐसे माहौल से निकल कर जिसने घुटन के अलावा कुछ दिया नहीं. हाँ लिखना स्कूल में ही शुरू हो गया था, सातवीं क्लास में. स्कूल के बाद ज़िन्दगी दिल्ली, बैंगलोर से होते हुए लिखने के लिए मुंबई पहुंची... और एक दिन स्कूल का ही एक लड़का फेसबुक पर मुझे ढूँढता हुआ इनबॉक्स में... नीतीश ही था वो. उसने मुझे मेरी ऐसी ऐसी बातें बताई जो मैं भी भूल चुका था. मुझे अच्छा लगा ये. हमने नंबर एक्सचेंज कर लिए क्योंकि दोनों में शायद कॉमन बात यही है कि दोनों में कोई इंजीनियर नहीं है. मैं जो कर रहा हूँ कर ही रहा हूँ और ये फोटोग्राफर बन गया है। दुबई जा रहा है काम के सिलसिले में. दो चार दिनों के लिए मुंबई में था तो मिलने के लिए फ़ोन किया. हम कल मिले और अचानक घूमने का प्लान बना. वर्सोवा, गिरगाँव चौपाटी, मरीन ड्राइव, गेट वे, ईरानी कैफ़े, चर्चगेट और मुम्बई लोकल सबकी सैर खाते-पीते एक साथ हो गई. कुछ 7-8 किलोमीटर पैदल भी चले. मज़ा आया. रात में वापस लौटते हुए सोचा कि इतना तो मैं किसी के साथ एक दिन में नहीं घुमा. नीतीश को कहा 'एक मुट्ठी मुंबई लेकर जा रहे हो'. वो हँस रहा था.खुश था. अब जब सोच रहा हूँ तो लग रहा है कि दरअसल नीतीश मेरे बचपन और स्कूल को एक मुट्ठी मेरे पास छोड़ने आया था. एक अच्छा, सुंदर हिस्सा उस अतीत का जो कोनों में कहीं दबा रहा गया था. आज बड़ा होकर मिला है. मैं बहुत सी बातें और चेहरे भूल चुका हूँ उस वक़्त के. कभी कभी तो अपनी कहानी भी नहीं लगती वो...पर अपना सच है. एक जगह जहाँ बचपन में किसी ने एक्सेप्ट नहीं किया, उसमें आज नीतीश से मिलना ऐसा था जैसे स्कूल के एक हिस्से में अब जाकर एक्सेप्ट किया हो मुझे. 14 साल बाद. एक ग्रहण का हिस्सा अपना भी उतरा कल रात.
आगे के काम और भविष्य के लिए शुभकामनाएं नीतीश. खुश रहो, मज़े करो और अच्छा काम करो. वापस आओ तो फिर मुलाक़ात होगी.

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