Sunday 8 June 2014

ये बारिश वो बारिश नहीं

ये बारिश वो बारिश नहीं जो बचपन में मिलने आती थी..
कश्ती चलाकर काग़ज़ की हमें, सींदबाद बतलती थी.

किसी बात से गुस्सा है अब, बेमौके आती जाती है
कुछ शिकायत भी है तभी तो, बुढ़िया सी गुर्राति है.

बारिश चिंघाड़ती है अब..इसके सुर बदल गये हैं.
मुझे शक है किसी ने तो इसके कान भरे हैं.

दीवारों से उतरती है जैसे कई साँप गुज़रते हैं
गावों मे चलती है तो घर के घर उजड़ते हैं.

लगता है बदला लेने की ताक में रहती है ये
कई सड़कों पर देखा है मौत सी बहती है ये.

और पाने की और पाने की चाहत का है ये अंजाम
सारी प्रकृति कर दी हमने अपनी इस हवस के नाम.

बचपन की फुहारों वाली बारिश अब भी याद आती हैं
मैं कच्चे मकान में रहता हूँ और ये बारिश मुझे डराती है.

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