Friday 10 October 2014

रिश्ते

वो कूड़े वाला हर रोज़ सुबह आकर
ले जाता है हमारा कूड़ा,
वो कूड़ा जो हमारी अपनी पैदाइश है|
और हम भी अपनी नाक सिकोडते
डाल आते हैं इसे उसके ट्रक में


घर के बाहर, हर सड़क पर,
हर नुक्कड़ पर
मुलाकात होती है इन कूड़े के ढेरों से
पर बच बच के चलते हैं सभी
कि कहीं पाँव भी ना लग जाए|

और कोई यह बोलने को तैयार नहीं
कि पड़ोसी के घर के सामने
रक्खा कूड़ा उनका है,
वो कूड़ा जो कभी
उनके अपने सामान का हिस्सा था|

इंसानी फ़ितरत हर उस चीज़ को
कूड़ा घोषित कर देती है
जिससे उसका कोई मकसद सिद्ध नहीं होता|

©Neeraj Pandey