Wednesday 15 October 2014

लताएँ भी कभी पेड़ बनना चाहती थीं

उस नन्हें से बीज ने
अपनी एक पत्ती निकाल
पास ही के बड़े पेड़ को देखा,
हाथ हिलाकर 'हैलो' भी कहा
और उसने भी जवाब में
एक फूल गिरा
लंबी उम्र का आशीर्वाद दिया

सपनों में था इसके
बिल्कुल वैसा ही बनना है,
घना, बड़ा, शानदार...

अपने जिस्म पर घोंसले रख
आशियाना देगा ये भी
किसी चिड़ीए के परिवार को...
या फिर अपनी छाँव से
कर देगा शीतल उस घर को
जहाँ उसे जन्म मिला है|

मासूम से सपने थे उसके
...और ज़रा उतावले भी,
तभी तो कुछ दिनों में ही
इतने पत्ते खोले थे इसने,

फिर जैसे-जैसे बड़ा हुआ
दुनियाँ देखी हर पत्ते से|

अपने ही बुजुर्गों को देखा
इमारतों की भेंट चढ़ते हुए,
देखा अपने चाचाओं को
जवानी में मरते हुए
वो साथी उसके जो हर शाम
हाथ हिला कर हाल-चाल
पूछ लेते थे,
उखाड़ फेंका था उनको किसी
बुलडोज़र ने चलते हुए

लाशें देखी थी उसने,
पड़ी हुई उन सड़कों पर,
चिथड़े होते जिस्म भी देखे
उम्र के थोड़ा बढ़ने पर
गुहार लगाई थी इसने
बहती तेज़ हवाओं में
रोया भी बारिश के साथ
छाले अब भी हैं निगाहों में|


दुनिया का रूप देख ये बच्चा
ताज़्ज़ुब कर रहा है,
अब ये बेचारा पौधा
बड़ा होने से डर रहा है|

कांपता है डर से थर थर अब ,
बड़े पेड़ से लिपट कर,
और... हमसे अपनी ज़िंदगी

कि मिन्नतें कर रहा है|


© Neeraj Pandey