Thursday 1 October 2020

रिकॉर्डिंग और रनिंग कॉंटेस्ट

कल रिकॉर्डिंग थी। लीसा की तबियत ठीक नहीं थी तो दो दिनों का delay हुआ। कोरोना की वजह से मैं स्टूडीओ नहीं जा सका था तो बीच बीच में Reuel (कम्पोज़र) मुझे फ़ोन करके कुछ चीज़ें पूछ लेते थे। आख़िर में थोड़ी नयी धुन जोड़ी थी तो तीन-चार नयी लाइनें लिखनी पड़ी। शाम के  क़रीब छः बजे मैसेज आया कि स्क्रैच बना कर client को भेज दिया गया है, उनके feedback के बाद फ़ाइनल रिकॉर्डिंग होगी। सच कहूँ तो कई महीनों बाद रिकॉर्डिंग, स्टूडीओ, मीटर, स्क्रैच जैसे शब्द सुने हैं। आख़िरी बार फ़िल्म मूथोन के गाने "भाई रे" की रिकॉर्डिंग करी थी, लॉक्डाउन से पहले। उसमें भी बहुत मज़ा आया था। वो गाना भी एकदम जदली जल्दी में किया हुआ था क्योंकि वक़्त की बहुत कमी थी। मैंने उसका पहला ड्राफ़्ट चालीस मिनट में लिखा था और दूसरा ड्राफ़्ट सागर (देसाई) के फ़ीड्बैक के बाद थोड़ा ठीक किया था। अगले दिन सागर ग़ायब रहा और उसके अगले दिन उसने बताया कि विशाल (ददलानी) वो गाना गाने के लिए तैयार हैं। मैं तो उछल ही पड़ा था। किए का फल इतनी जल्दी और इतना बढ़िया! और क्या ही चाहिए। हमने रात के एक से तीन बजे तक रिकॉर्डिंग की और गाना तीन दिन में बनकर तैयार था। ये प्रेशर में फटाफट लिखने की practice सागर की ही कराई हुई है। कभी कभी कुछ काम जो आपके ऊपर तलवार रखकर आते हैं उनसे deal करने का भी अपना सुख है। "तुम डराओगे मुझे? चलो देखते हैं।" आदमी का अपना test हो जाता है।

कल तो मैं घर में ही बैठा मन ही मन फुदक रहा था। मन कर रहा था कि मैं क्यूँ नहीं हूँ रिकॉर्डिंग स्टूडीओ में? मुझे पसंद नहीं ऐसे बैठे रहना जब मेरी कोई रिकॉर्डिंग चल रही हो। मुझे अपने सामने देखना होता है कि ये कैसे बड़ा हो रहा है। फ़िल्म कामयाब के गाने करते हुए मैंने हार्दिक से बोला था कि "भाई जानते हो गाने लिखना कैसा लगता है? लगता है किसी के बच्चे के पैर में पायल पहना रहा हूँ। बच्चा तुम्हारा है पर जहाँ जहाँ चलेगा उसके साथ पायल की हल्की सी आवाज़ साथ चलेगी।" उस वक़्त हार्दिक ने क्या बोला था मुझे ठीक ठीक याद नहीं पर वह feeling अभी भी वैसी की वैसी ही है। अभी भी "छन्न" करके कुछ बज जाता है कुछ भी नया लिखते हुए। 

कई बार दोस्त पूछते हैं कि "ऐसे किसी बनी बनायी धुन पर लिखना तो बड़ा मुश्किल काम होगा? पहले ही हाथ बाँध दिए" सच कहूँ तो मैं जितना काम कर पाया हूँ उसमें मुझे लगता है कि मैं दी हुई धुन पर लिखूँगा तो बेहतर लिख पाउँगा। क्योंकि धुन एक दिशा के साथ आती है जो मेरे म्यूज़िक सेन्स के अभाव को पूरा करती है। मैं अलग अलग म्यूज़िक नहीं सोच पाता। और रही बात मुश्किल होने कि तो मैं इसे किसी पहेली की तरह देखता हूँ कि देखते हैं बात बनती है या नहीं। :) और इसमें एक सुख और है जो एक दूसरे की बात को समझ लेने से आता है। किसी ने कोई म्यूज़िक बनाया और अपने उसके बनाए हुए में कुछ ऐसा (ख़याल और शब्द) डाला की वो पूरा हो गया। अब वो लोग सुनेंगे और कहेंगे कि "अरे ये तो एक ही चीज़ है।" पर वो एक नहीं थी, वो एक हुई, होते होते। संगीत ने अपने ख़याल और शब्दों को ढूँढा और मैं (और मेरे जैसे जाने कितने आर्टिस्ट), मैंने बस संगीत की ज़रा सी मदद की कि देखो शायद यह पायल तुम्हारे पैरों में सही आए। :)

आज से running contest भी शुरू हो गया है। मैं आज सुबह पाँच बजकर बीस मिनट पर ही जग गया था। कुछ साढ़े तीन किलोमीटर भाग कर आया। ज़्यादा push नहीं किया ख़ुद को पर थोड़ी थकान तो हो ही गयी। तीन महीने चलेगा ये contest इसलिए slow progress ही सही strategy लग रही है। धीरे धीरे strength बढ़ेगी।pace भी ठीक करनी है। आज के run से जो एक बात मैंने सीखी कि शुरू में ही सारी एनर्जी ख़त्म नहीं कर देनी होती क्योंकि आज मैंने एक अलग रास्ता ले लिया था जिसपर चढ़ाई थी। साँस जल्दी फूल गयी। अगली बार यह ग़लती नहीं करूँगा। शायद कल दौड़ने ना भी जाऊँ, थोड़ा rest लूँगा recovery के लिए। अगला run better करना है। :)

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